जैसलमेर के ग्रामीण अंचल में ऊँट अनुसंधान केन्द्र ने लगाए पशु स्वास्थ्य शिविर आजीविका में महत्वपूर्ण बदलाव हेतु पशुपालक इको-टूरिज्य में अपना रूझान बढ़ाएं: डॉ.साहू
इन अवसरों पर पशुपालकों से संवाद करते हुए भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र के निदेशक डॉ.आर्तबन्धु साहू ने कहा कि परिवर्तित परिदृश्य में ग्रामीण अंचल के पशुपालक, पशुधन को इको-टूरिज्म के दृष्टिकोण से भी उपयोग में लेते हुए अपनी आजीविका में महत्वपूर्ण बदलाव ला सकते हैं । डॉ. साहू ने कहा कि प्रदेश में खेती से ज्यादा, पशुधन आधारित आजीविका को ध्यान में रखते हुए पशुपालकों को पशु उत्पादन, स्वास्थ्य, पोषण आदि सभी पहलुओं की अद्यतन जानकारी होनी परम आवश्यक है
ताकि वे अपने पशुधन को बेहतर रखते हुए अपनी आमदनी में अपेक्षित सुधार ला सके। इस दौरान निदेशक डॉ.साहू ने पशुपालकों को ऊँटनी के दूध की औषधीय उपयोगिता एवं एनआरसीसी द्वारा इस क्षेत्र में किए जा रहे अनूठे प्रयासों की जानकारी देते हुए विशेषकर महिलाओं को प्रोत्साहित किया कि प्रदेश में पर्यटनीय महत्व को दृष्टिगत रखते हुए ऊँटनी के दूध की बिक्री को एक उद्यम के रूप में अपनाते हुए अच्छा खासा लाभ कमाया जा सकता है।
केन्द्र की एससीएसपी उपयोजना के नोडल अधिकारी डॉ. आर.के.सावल, प्रधान वैज्ञानिक ने केन्द्र की इन गतिविधियों पर प्रकाश डालते हुए बताया कि क्षेत्र में ऊँट के साथ-2 बकरी, भेड़ एवं गाय आदि मुख्य पशुधन हैं। अंत: इस दौरान महिला पशुपालकों को पशुओं की साफ-सफाई एवं इनसे स्वच्छ दूध उत्पादन प्राप्त करने संबंधी उपयोगी जानकारी दी गई। साथ ही उन्हें दूध उत्पादन हेतु प्रयुक्त लघु उपकरण एवं स्वच्छ व मुलायम वस्त्र एवं पशुओं हेतु अनुपूरक पशु आहार के रूप में केन्द्र द्वारा निर्मित ‘करभ पशु आहार’ भी वितरित किया गया।
केन्द्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. शिरीष नारनवरे ने शिविर में पशुओं की स्वास्थ्य संबंधी विभिन्न समस्याओं के संबंध में महत्वपूर्ण जानकारी देते हुए कहा कि पशुपालकों द्वारा अपने पशुओं की कमजोर स्थिति, आहार ग्रहण क्षमता एवं उत्पादन में कमी आना आदि पहुलओं पर विशेष गौर किया जाना चाहिए। ऐसी स्थिति में वे पशु चिकित्सक अथवा पशु चिकित्सालय से भी जांच करवाएं।
इस अवसर पर केन्द्र के डॉ.काशी नाथ, पशु चिकित्सा अधिकारी ने कहा कि शिविर में लाए गए पशुओं में चीचड़ की समस्या मुख्य तौर पर देखी गई वहीं उनमें भूख कम लगना, पेट में कीड़े पड़ने आदि रोग भी देखे गए। इस हेतु केन्द्र की वैज्ञानिकों की टीम द्वारा उचित दवा देते हुए पशुओं की स्वास्थ्य संबंधी विभिन्न समस्याओं का निदान व उपचार किया गया। साथ ही मेंज बीमारी हेतु ऊँटों में टीकाकरण भी किया गया।
एनआरसीसी द्वारा आयोजित शिविरों में जैसलमेर जिले की पंचायत समिति के श्री सलीम खां तथा प्रगतिशील युवा पशुपालक श्री खेरूद्दीन ने विशेष योगदान दिया। उन्होंने यह अपेक्षा जताई कि केन्द्र आगे भी समय-समय पर ऐसे उपयोगी शिविरों के आयोजन द्वारा जरूरमंदों की मदद करें ताकि प्रदेश में पशुधन को स्वस्थ रखा जा सके। केन्द्र के श्री मनजीत सिंह ने पशुपालकों के पंजीयन, उपचार व आहार आदि जैसे कार्यों में सक्रिय सहयोग प्रदान किया।
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