प्राचीनकाल की बनी ‘बावड़ी ’, छतरिया पुराने जमाने का अनोखा इंजीनियरिंग मॉडल आज हो रही है धराशाही।
राकेश कुमार पंवार । सिटी एक्सप्रेस न्यूज।,कोलायत चानी गांव में बनी प्राचीन काल की छतरिया जो की उस समय की अद्भुत कला का समावेश था लेकिन आज देखरेख के आभाव में जर्झर हो रही है वही गांव से करीब 1 किमी दूर बनी बावड़ी जो जल सरंक्षण के काम आती थी इसमें कुल सात सपाट लेकिन धूल मिटटी के तथा देखरेख नहीं होने के कारण आज छः सपाट भर गए है पहला बचा हुआ है क्योकि प्राचीन काल से ही धरती पर जल की कमी को देखते हुए जल संरक्षण की परंपरा चलती आ रही है।जनता को जल की नियमित प्राप्ति करवाने के लिए राजाओं व शासकों द्वारा कुओं, नहरों, तालाबों, बांधों, झीलों व बावड़ियों का विवरण मिलता आया है। प्राचीन समय में इन परंपरागत जल स्रोतों में से बावड़ियों का खासा महत्व था। इन बावड़ियों में बनाई गई सीढ़ियों के सहारे आसानी से जल तक पहुंचा जाता था। जहां एक ओर ये बावड़ियां अपनी खूबसूरत वास्तुकला व नक्काशी के लिये जानी जाती थी वहीं दूसरी ओर इनका अपना एक सांस्कृतिक महत्व भी था।पहले समय में जल आपूर्ति के उद्देश्य से तकरीबन हर राज्य व कस्बों से बनाई गई यह बावड़ियां केवल जलउपयोग की चीज ही नही बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन का एक अभिन्न अंग हुआ करती थीं।चानी के अल्वा ये छतरिया, झझू, चकड़ा, चाण्डासर, गजनेर, आदि गांवो में बनी है इन छतरियों के पास ही पुराना कुआँ है जो सीधे पाताल से पानी निकालता है इनके निर्माण के बारे में जानकारी का आभाव है
वही अगर पुरातात्व विभाग अपने अधीन ले कर इनकी देखरेख करना शुरू कर देवे तो यह पुनः स्थापत्य कला को जीवित करने जैसा है।
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