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धूम धाम से भरा गया नानी बाई का मायरा।

धर्मचंद सारस्वत। खारड़ा ।जिले के खारड़ा गांव में चल रही नानी बाई के मायरे की कथा गत रात्रि सम्पन्न हुई 
कथाव्यास सुनीता स्वामी ने कहा कि ज्यों ही नानी बाई को अपने पिता नरसी मेहता के अंजार नगर में आने का पता चलता है तो वह हर्ष में उनसे मिलने जाती है। मगर मिलने जाने से पूर्व अंजार नगर स्थित श्रीरंग सेठ के परिवार की ओर से नरसी मेहता की गरीबी पर दिए गए तानों से नानी बाई को हुई पीड़ा और उसकी छटपटाहट उसे इस कदर परेशान कर देती है कि वह अपने पिता से मिलने के दौरान नरसी मेहता को ही अनेक पीड़ादायक बातें कहने पर मजबूर होती है। नानी बाई कहती है कि यदि आज उसकी मां जीवित होती तो निश्चित ही वह उसके लिए दो जोड़ी कपड़े तो अवश्य लाती मगर वे तो बिल्कुल खाली हाथ आए हैं। इससे ससुरालपक्ष को उसे व उसके पिता नरसी मेहता को बुरा भला कहने का अवसर मिला है। इसी क्रोध की अवस्था में नानीबाई अपने पिता से कहती हैं कि जिस श्रीहरि पर उन्हें ज्यादा भरोसा है तो उसे सहायता के लिए अभी क्यों नहीं बुलाते। इस पर नरसी मेहता अपने प्रभु पर पूरा भरोसा करते हुए कहते हैं कि वे उनकी सहायता करने अवश्य आएंगे। नरसी मेहता अपनी बेटी नानी बाई से कहते हैं कि वे अपने ससुराल पक्ष के लोगों से एक और पत्र लिखवाए, जिसमें अनेक कीमती वस्तुओं की मांग हो। इस बात का ससुराल पक्ष में मजाक बनता है। नानी बाई परेशान होकर पानी भरने जाती हैं और एक पेड़ पर बैठे तोते से कहती हैं कि जरा ऊंची टहनी पर बैठकर दूर से देखकर बताओ कि कहीं से मेरे भाई श्रीकृष्ण की आहट तो नहीं सुनाई पड़ रही। तोते ने कहा कि किसी रथ के आने से उड़ने वाली धूल की स्थिति से पता चल रहा है कि कोई रथ आ रहा है और रथ में द्वारकाधीश श्रीकृष्ण अपनी रानी रूकमणि के साथ बैठे हैं।
वहीं खाती के रूप में भी श्रीकृष्ण भी नरसी के समक्ष आते हैं और अपने प्रभाव से नरसी मेहता के साथ आए सभी नेत्रहीनों को उनके नेत्र लौटा देते हैं। वहीं नानीबाई अपने भाई श्रीकृष्ण द्वारा उनकी सहायता करने के लिए आने पर उनसे कहती हैं कि वे परंपरागत तौर पर ससुरालपक्ष को वही चीजें दे दें जो जरूरी हों। मगर श्रीकृष्ण नानीबाई से कहते हैं कि घबराने की जरूरत नहीं केवल तुम्हारे ससुराल पक्ष के लोगों के लिए ही नहीं बल्कि पूरे गांव के सभी लोगों के लिए भी भरपूर वस्तुएं उपलब्ध हैं। इस पर इठलाती नानीबाई ने अपने भाई श्रीकृष्ण द्वारा देशभर के विभिन्न कोनों से लाई गई महंगी कीमती वस्तुएं अपने ससुरालपक्ष को मायरे के रूप में सोपन्ते हैं 
इस अवसर पर यजमान केदारमल सारस्वत, श्री लाल सारस्वत,चिरंजीलाल ,रामपाल महाराज ,श्रवन दास,नोर्ंगलाल,ताजुराम कड़वासरा, दामोदर गोदारा ,मल्लूराम जाखड़ ,मांगीलाल प्रजापत , धर्मपाल शारस्वत,दामोदर सारस्वत, सुभाष मोट, सहित काफी संख्या में ग्रामीण मौजूद रहे

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