जीवन में अर्थ का महत्व" विषयक संवाद एवं परिचर्चा आयोजितभगवान महावीर के सिद्धांत 2600 वर्ष बाद आज भी प्रासंगिक - डॉ. पी.एस. वोहरा।
बीकानेर / गंगाशहर , 25 जून। श्री जैन श्वेतांबर तेरापंथी सभा, गंगाशहर द्वारा "जीवन में अर्थ का महत्व" विषय पर संवाद एवं परिचर्चा का आयोजन शांतिनिकेतन में किया गया। इस अवसर पर संबोधित करते हुए मुख्य वक्ता डॉ वी एस वोहरा ने अपने उद्बोधन में कहा कि हमारा केंद्र बिंदु "मनुष्य का विकास" होना चाहिए जो कि दुर्भाग्य से वर्तमान में "अर्थ" हो गया है। सच में हम राह भटक गए हैं। भगवान महावीर के सिद्धांत आज 2600 वर्ष बाद भी प्रासंगिक हैं। पूंजीवाद और समाजवाद दोनों में विकास की बात है, लेकिन भगवान महावीर ने भौतिकवाद के साथ अध्यात्म के विकास होने की बात कही है। उन्होंने कहा कि सर्वप्रथम ईच्छा की उत्पत्ति होती है, जो आवश्यकता में परिणत होती है तथा आवश्यकताएं मांग बन जाती है। हालांकि सभी इच्छाएं आवश्यकता नहीं होती और सभी आवश्यकताएं मांग नहीं बनती, परंतु जब अधिकांश इच्छाएं आवश्यकताएं बनती है और ये आवश्यकताएं मांग नहीं बन पाती है , तो व्यक्ति के भीतर असंतोष की उत्पत्ति होती है, जो उसके लिए घातक है। उन्होंने धन के उपयोग की चार अवस्थाएं बताई- सुविधा, वासना, विलासिता, प्रतिष्ठा। सुविधा के लिए धन का व्यय किया जाना फिर भी उचित कहा जा सकता है. लेकिन उससे आगे चलकर वासना, विलासिता या प्रतिष्ठा के लिए धन का व्यय करना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं कहा जा सकता। हमें धन के अर्जन के साथ उसके विसर्जन पर जोर देना चाहिए।
शासनश्री साध्वीश्री शशि रेखा जी ने कहा कि शास्त्रों में धर्म, अर्थ, काम मोक्ष ये चार तत्व बताए गए हैं। कमाना एक बात है, परंतु उसमें लोलुपता,आकांक्षा होना दूसरी बात है। भगवान महावीर ने संयमी समाज की कल्पना करते हुए श्रावकों के लिए अणुव्रत का समाधान दिया। उन्होंने भौतिकवाद और अध्यात्मवाद का समन्वय जरूरी बताया। न्याय व नीति से ही अर्थ का अर्जन उचित है। उन्होंने कहा कि नैतिकता से अर्जन करना चाहिए। उन्होंने स्वार्थ के साथ परमार्थ का चिंतन करने पर बल दिया। साध्वी श्री ललितकला जी ने कहा कि अर्थ का अर्जन, उपभोग और संग्रहण यह त्रिपदी है। व्यक्ति की मांग रोटी कपड़ा और मकान है, जिसकी पूर्ति के लिए वह अर्जन करता है, परंतु उसकी आकांक्षाएं जब विशाल बन जाती है तो उनकी पूर्ति कर पाना उसके लिए संभव नहीं रहती, ऐसी स्थिति में वह निराश हो जाता है। अणुव्रत पदार्थों का सीमांकन करना सिखाता है। अर्थ में आसक्ति व्यक्ति को डुबो देती है, वहीं अनासक्ति उसे भवसागर से उबार लेती हैं। उन्होंने अर्थ को दिमाग में ना रख कर जेब तक ही रखने के बारे में उदाहरण सहित समझाया। साध्वीश्री कांतप्रभा जी ने गीतिका का संज्ञान किया। कार्यक्रम का शुभारंभ नमस्कार महामंत्र के उच्चारण से हुआ। तेरापंथी महासभा के संरक्षक जैन लूणकरण छाजेड़ ने विषय प्रवर्तन करते हुए कहा कि अर्जन के साथ विसर्जन करें, गुरुदेव तुलसी का यह मंत्र बहुत उपयोगी है।आचार्य श्री महाश्रमण जी कहतें हैं कि अर्थ सब कुछ नहीं है परन्तु बहुत कुछ भी है। आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी आय का सीमांकन की बात कहते थे। मुख्य वक्ता डॉ पीएस वोहरा का परिचय देते हुए उन्होंने कहा कि डॉ वोहरा द्वारा लिखित आर्थिक सफरनामा में उन्होंने अर्थव्यवस्था के हर पहलू को छुआ है। वोहरा जी ने ने दुकानदार, किसान, किराने का सामान बेचने वाले, दूधवाले, टैक्सी ड्राइवर, स्ट्रीट फूड विक्रेता, प्रॉपर्टी डीलर, बीमा डीलर, स्टॉक ब्रोकर और सरकारी और निजी शिक्षकों को शामिल किया है। एक अरबपति स्टॉक मार्केट ब्रोकर से लेकर कम आय कमाने वाले "गोलगप्पा विक्रेता" तक के इन लोगों की वास्तविक आर्थिक जीवनशैली को जानने के लिए व्यक्तिगत रूप से बातचीत की है और उनका साक्षात्कार लिया है। तेरापंथी सभा के अध्यक्ष अमरचंद सोनी ने आभार ज्ञापन किया। डॉक्टर पी एस वोहरा का साहित्य, पताका एवं मोमेंटो से सम्मान किया गया। कार्यक्रम का सफल संचालन सभा मंत्री रतनलाल छलाणी ने किया।
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