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तपस्वी बबीता शाह बोथरा शोभायात्रा व अभिनंदनकन्हैयालाल भुगड़ी के मास खमण से अधिक की तपस्या की अनुमोदना ।

बीकानेर, 20 अगस्त। जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ के आचार्यश्री जिन पीयूष सागर सूरिश्वरजी के सान्निध्य में मंगलवार को श्री सुगनजी महाराज का उपासरा ट्रस्ट व श्री जिनेश्वर युवक परिषद के संयुक्त तत्वावधान में सकलश्री संघ के सहयोग से बजे रांगड़ी चौक के सुगनजी महाराज के उपासरे से मासखमण के तपस्वी सूरत की बबीता शाह बोथरा का शोभा यात्रा गाजे बाजे से निकली। मास खमण से अधिक तपस्या करने वाले कन्हैयालाल भुगड़ी ने भी आचार्यश्री से आशीर्वाद लिया।
 शोभायात्रा आदिश्वरजी, श्री चिंतामणि आदि मंदिरों के आगे से दर्शन वंदन करते हुए ढढ्ढा चौक में प्रवचन स्थल पहुंची जहां तपस्वी बबीता शाह बोथरा का अभिनंदन किया जाएगा। श्री सुगनजी महाराज का उपासरा ट्रस्ट के मंत्री रतन लाल नाहटा, श्री जिनेश्वर युवक परिषद के अध्यक्ष संदीप मुसरफ व मंत्री मनीष नाहटा, मूलाबाई दुग्गड़, अंजू मुसरफ व संतोष नाहटा ने तपस्वी बबीता शाह बोथरा का प्रतीक चिन्ह, प्रशस्ति पत्र आदि से अभिनंदन किया । श्रीमती संतोष के परिजनों ने भी मास खमण की तपस्या करने पर बहूमान किया। वरिष्ठ श्रावक चंपालाल शाह बोथरा परिवार की ओर नारियल की प्रभावना से श्रावक-श्राविकाओं का सम्मान किया।तपस्या से आत्मशुद्धि
आचार्यश्री जिन पीयूष सागर सूरीश्वरजी ने धर्मचर्चा में कहा कि तपस्या से आत्म शुद्धि व कर्मों की निर्जरा होती है। आहार का त्याग प्रबल पुरुषार्थ व प्रयास से होता है। तपस्वी ने एक माह तक सीमित गर्म जल का उपयोग करते हुए देव, गुरु व धर्म की साधना, आराधना व भक्ति कर पुण्यों का संचय किया है। तपस्याओं की जितनी अनुमोदना की जाए उतनी कम है। परिवार के सहकार, सहयोग व समर्थन से तपस्वी ने अपने लक्ष्य को पूर्ण किया है। तप की पालना में सहयोग करने वालों ने जिन शासन की प्रभावना की है। बीकानेर के मुनि सम्यक रत्न सागर ने कहा कि तपरूपी अग्नि से तपस्या में तपया जाता है। आत्मा को कुंदन व हीरे जैसे निर्मल, निरंजन, शुद्ध,बुद्ध व निर्मल स्वरूप में प्रकट होती है कर्म और कषायों के बंधन टूटते हैं। जैन धर्म में सम्यक तप की महिमा बताई गई है। सम्यक तप से सम्यक चारित्र व दर्शन और सिद्धि की प्राप्ती होती है। जीवा योनियों में निगोद, त्रियंच, मनुष्य व देव गतियों में परिभ्रमण संयोग व वियोग तथा शरीर व आहार की आवश्यकता रहती है। आहार का त्याग करना महापुरुषार्थ व पराक्रम का कार्य है।
श्री चतुःशरण प्रकीर्णक सूत्र की आराधना
  आचार्यश्री के सान्निध्य में चल रहे श्री 45 आगम तप में मंगलवार को वीर भद्र द्वारा रचित श्री चतुःशरण प्रकीर्णक सूत्र का जाप व आराधना की गई। आचार्यश्री ने धर्मचर्चा में बताया कि इस सूत्र का दूसरा नाम कुशलानुबंधी अध्ययन है। चार शरण स्वीकार, दुष्कृत की गर्हा और सुकृत की अनुमोदना इन तीनों विषयों का बारम्बार स्मरण मंथन करने का संदेश है। मनुष्य जन्म की सफलता इसके द्वारा ही साध्य बन सकती है। इसमेंं छह आवश्यक के पालन से आत्म शुद्धि के बारे में बताया गया है। सामायिक आवश्यक से चारित्र गुण की शुद्धि होती है। चतुर्विशतिका आवश्यक से सम्यकत्व की शुद्धि, वंदन आवश्यक से ज्ञानादि गुण की शुद्धि, प्रतिक्रमण आवश्यक से मोक्षमार्ग आचारदि की शुद्धि, कार्योत्सर्ग आवश्यक से अतिचारों की शुद्धि व पच्चक्खाण आवश्यक से तपश्चर्यादि की शुद्धि होती है।

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