ब्रज में बच्चों से लेकर बूढ़े तक लेते हैं होली का आनंद।
डॉ. गोपाल चतुर्वेदी।सिटी एक्सप्रेस न्यूज।वृन्दावन।रंग-गुलाल का अनूठा पर्व होली अपने देश में अत्यंत हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। परंतु ब्रज की होली अपनी अनूठी और अनोखी परंपराओं के कारण सारे विश्व में प्रसिद्ध है। यहां होली का रंग बसंत पंचमी से लेकर चैत्र कृष्ण दशमी तक पूरे 50 दिनों समूचे ब्रज के कण-कण में छाया रहता है। चैत्र कृष्ण द्वितीया से चैत्र कृष्ण पंचमी तक तो यहां होली अपने पूरे शबाब पर होती है। समूचे ब्रज मंडल में होली की शुरुआत बसंत पंचमी से हो जाती है।इस दिन से ब्रज के सभी मंदिरों में ठाकुरजी के नित्य प्रति के श्रृंगार में गुलाल का प्रयोग होने लगता है। इसके अलावा होली जलाए जाने वाले विभिन्न स्थानों पर होली के प्रतीक के रूप में होली के डांडे गाड़ दिया जाते हैं। शिवरात्रि से ढोल और ढप के साथ रसिया गायन भी प्रारंभ हो जाता है। हुरियारे भांग और ठण्डाई की मस्ती में गा उठते हैं:
" आजु बिरज में होरी रे रसिया, होरे रे रसिया बरजोरी रे रसिया आजु बिरज में होरी रे रसिया कौन के हाथ कनक पिचकारी कौन के हाथ कमोरी रे रसिया "।
ब्रज में होली की विधिवत शुरुआत फाल्गुन कृष्ण एकादशी को मथुरा-मांट मार्ग पर मथुरा से 18 किलोमीटर दूर स्थित मानसरोवर गांव में लगने वाले राधा रानी के मेले से होती है। इस वर्ष यह मेला 16 फरवरी 2023 को लगेगा।इसके बाद फाल्गुन शुक्ल नवमी को बरसाना में नंदगांव के हुरियारों (पुरुषों) और बरसाना की गोपिकाओं(स्त्रियों) के मध्य विश्वप्रसिद्ध लट्ठमार होली होती है। बरसाना, दिल्ली-आगरा राजमार्ग पर स्थित कोसीकलां से 7 किलोमीटर और मथुरा से (वाया गोवर्धन) 47 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस होली में नंदगांव के गोस्वामी अपने को श्रीकृष्ण का प्रतिनिधि मानकर राधा रानी के प्रतीक के रूप में बरसाना के गोस्वामी को और बरसाना के गोस्वामी अपने को राधा रानी का प्रतिनिधि मानकर नंद गांव के गोस्वामी को रंग की बौछारों के मध्य प्रेम भरी गालियां देते हैं। साथ ही श्रृंगाररस से परिपूर्ण हंसी मजाक भी करते हैं। तत्पश्चात बरसाना की गोपियां अपने-अपने घूंघट की ओट से नंदगांव के हुरियारों पर लाठियों की बौछार करती हैं। इन प्रहारों को नंदगांव के हुरियारे रसिया गा-गा कर अपनी ढालों पर रोकते हैं। गोपिकाओं की लाठियों के प्रहारों से नंदगांव के हुरियारों की ढालें देखते ही देखते छलनी हो जाती हैं।इस वर्ष यह होली 28 फरवरी 2023 को होगी। इससे एक दिन पूर्व 27 फरवरी 2023 को भी बरसाना में ही लड्डू होली होगी जिसमें श्री जी मंदिर के गोस्वामी गण भक्तों व श्रद्धालुओं पर लड्डूओं की बौछार करेंगे।अगले दिन यानि फाल्गुन शुक्ल दशमी को इसी प्रकार की लट्ठमार होली नंदगांव में खेली जाती है। इस होली में नंद गांव की गोपिकायें बरसाना के गोस्वामियों पर लाठियां बरसाती हैं।इस वर्ष यह होली 1 मार्च 2023 को होगी।
नंदगांव की होली हो चुकने के अगले दिन समूचे ब्रज में रंगभरी एकादशी का पर्व बड़ी ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इस दिन ब्रज के प्रायः सभी मंदिरों में ठाकुर जी के समक्ष रंग-गुलाल,इत्र-केवड़ा और गुलाब जल आदि की होली होती है।कुछ मंदिरों से राधा और कृष्ण के स्वरूपों की झांकियां भी निकलती हैं। इन झांकियों के साथ बहुत बड़ी मात्रा में रंग-अबीर रूपी कृपा प्रसाद साथ चलता है। यह कृपा प्रसाद लोगों पर इस कदर उलीचा जाता है कि देखते ही देखते ब्रज का हर एक कोना इंद्रधनुषी हो जाता है।फाल्गुन शुक्ल एकादशी से फाल्गुन शुक्ल पूर्णमासी तक पूरे 5 दिन वृंदावन के ठाकुर बांके बिहारी मंदिर में सुबह-शाम गुलाल,टेसू के रंग और इत्र व गुलाब जल आदि से बड़ी ही जबरदस्त होली खेली जाती है। इस अवसर पर लड्डू और जलेबी की होली भी होती है। फाल्गुन शुक्ल एकादशी के दिन मथुरा की श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर भी होली का रंगारंग कार्यक्रम होता है।इस वर्ष यह कार्यक्रम 3 मार्च 2023 को होगा।ब्रज में वन-उपवनों एवं उद्यान-वाटिकाओं की भरमार है।जिनमें शीत ऋतु के बाद सुहानी बसंत ऋतु के आने पर नाना प्रकार के फूल खिलते हैं। अतः ब्रज में होली पर रंग-बिरंगे, कोमल-मृदुल, महकते-मुस्कुराते फूलों से भी होली खेली जाती है। फूलों की यह होली वृंदावन में रास-लीलाओं के दौरान राधा व उनकी सखियों तथा कृष्ण व उनके सखा फूलों से परस्पर इस कदर होली खेलते हैं कि राधा-कृष्ण फूलों की वर्षा से उसके अंदर दब-ढक जाते हैं और लीला स्थल पर फूलों का एक विशाल ढेर बन जाता है। इस ढेर में से निकलते हुए राधा-कृष्ण जब इन फूलों को अपने दोनों हाथों से चारों ओर उछालते हैं तो बड़ा ही मनोरम दृश्य उत्पन्न होता है।
फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा को होलिका-दहन होता है। इस दिन मथुरा के फालैन और जटवारी ग्राम में जिस प्रकार होली चलाई जाती है वह अप्रतिम है।फालैन मथुरा से 53 किलोमीटर और कोसीकला से 9 किलोमीटर दूर छाता तहसील का एक छोटा सा गांव है।यहां फाल्गुन शुक्ल पूर्णमासी को विशालकाय होली सजाई जाती है। इस होली को यहां के प्रह्लाद मंदिर का पंडा प्रहलाद कुंड में स्नान करने के बाद प्रज्वलित करता है तथा इस होली को आग की उसकी ऊंची- ऊंची लपटों के मध्य में से नंगे पांव पार करता है। परंतु उसका बाल तक बांका नहीं होता।इस वर्ष यह होली 7 मार्च 2023 को होगी।मथुरा से लगभग 52 किलोमीटर दूर स्थित छाता तहसील के जटवारी गांव में भी होलिका दहन के दिन एक पंडा जलती हुई होली की विशालकाय तेज लपटों के मध्य में से नंगे पांव सकुशल बाहर निकलता है।
होलिका दहन के अगले दिन यानी धुलेंडी को समूचे ब्रज में रंग और गुलाल की बड़ी ही विकट होली खेली जाती है जोकि इस वर्ष 8 मार्च 2023 को होगी।धुलेंडी के दिन सारे देश में होली समाप्त हो जाती है। परंतु ब्रज में इसके 10 दिन बाद तक भी होली किसी ना किसी रूप में निरंतर चलती रहती है।धुलेंडी के दिन से 4 दिन बाद तक समूचे ब्रज में "तानों" के गायन का क्रम चलता है। यह ब्रज की एक विशेष समूह गायन शैली है।अपने देश में ब्रज के अलावा कहीं भी तान गायकी सुनने को नहीं मिलती है।चैत्र कृष्ण द्वितीया को मथुरा से 22 किलोमीटर दूर बलदेव(दाऊजी) के ठाकुर दाऊदयाल मंदिर में दाऊजी का हुरंगा होता है। जो कि अत्यधिक लोकप्रिय है। इसे बड़ा फाग भी कहा जाता है। इस रंगे में गोस्वामी समाज के हुरियारे व हुरियारिन गोप-गोपिका के स्वरूप में होली खेलते हैं। दाऊजी मंदिर प्रांगण में घुटनों-घुटनों भरे पानी एवं रंग गुलाल की इंद्रधनुषी छटा में होने वाले इस अनूठे रंगे में होली खेलने आईं हुरियारिनें,हुरियारों के शरीर सेउनके कपड़े फाड़ती हैं।तत्पश्चात वह इन फ़टे हुए कपड़ों के कोड़े बनाकर उनसे गीले बदन हुरियारों की जमकर पिटाई करती हैं। इसके प्रत्युत्तर में ब्रज के यह वीर हुरियारे मन्दिर में बने हुए एक कुंड में से पिचकारियों व बाल्टियों में रंग भर भर कर हुरियारिनों को रंग से सराबोर कर देते हैं। इस वर्ष यह हुरंगा 9 मार्च 2023 को होगा।
इसी दिन मथुरा से 50 किलोमीटर दूर जाव गांव में भी अत्यंत रसपूर्ण हुरंगा होता है।इस हुरंगे में निकटवर्ती ग्राम बठैन के पुरुष श्रीकृष्ण के अग्रज बलराम के रूप में जाव ग्राम की राधा रानी रूपी स्त्रियों से होली खेलते हैं। इस हुरगे में जाव गांव की सभी स्त्रियां अपने जेठ के रूप में आये बठैन के पुरुषों से लाज मारकर उसी तरह होली खेलती हैं जिस प्रकार की दाऊजी के हुरंगे में होली खेली जाती है। चैत्र कृष्ण तृतीया को बठैन में लठमार हुरंगा होता है।इस हुरंगे में राधारानी रूपी हुरियारिनें बलराम रूपी हुरियारों पर लाठियों से प्रहार करती हैं। जिन्हें बलराम रूपी हुरियारे अपनी ढालों पर रोकते हैं। अंत में यह हुरंगा हार-जीत का फैसला हुए बगैर दोनों पक्षों की जय-जयकार के साथ समाप्त होता है।इस वर्ष यह हुरंगा 10 मार्च 2023 को होगा।ब्रज में होली की मस्ती में धुलेंडी से लेकर चैत्र कृष्ण दशमी तक जगह-जगह चरकुला नृत्य, हल नृत्य, हुक्का नृत्य, बम्ब नृत्य, तख़्त नृत्य, चांचर नृत्य एवं झूला नृत्य आदि अत्यंत मनोहारी नृत्य भी होते हैं। इस वर्ष यह सब कार्यक्रम 8 मार्च से लेकर 17 मार्च 2023 तक चलेंगे।
चैत्र कृष्ण तृतीया से लेकर चैत्र कृष्ण दशमी तक निरंतर 7 दिनों तक ब्रज के प्रायः समस्त मंदिरों में फूलडोल की छटा छाई रहती है।इस दौरान मंदिरों में विराजित ठाकुर विग्रहों के विभिन्न प्रकार के फूलों के द्वारा नयनाभिराम श्रृंगार होते हैं।इस अवसर पर उत्कृष्ट होलियों का गायन भी होता है। अनेक स्थानों पर फूलडोल के मेले भी लगते हैं।




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