10 दिवसीय पाठ्यक्रम का समापन।
बीकानेर 21.02.2025 । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्रा (एनआरसीसी) में ‘खाद्य श्रृंखला में सूक्ष्मजीव-रोधी प्रतिरोध और दवा अवशेषों की समस्या को कम करने व पशुधन में रोगों के प्रबंधन के लिए आणविक पद्धतियाँ’’ विषयक आईसीएआर प्रायोजित 11 दिवसीय लघु पाठ्यक्रम (11-21 फरवरी) का आज समापन हुआ । इस लघु पाठ्यक्रम में देश के विभिन्न1 राज्यों यथा- राजस्थाकन, गुजरात, आंध्रप्रदेश, मध्यरप्रदेश, उड़ीसा, तमिलनाडु के 25 प्रतिभागी जो देश के विभिन्न महाविद्यालयों के प्राचार्य है, ने भाग लिया।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में डॉ.तरुण कुमार भट्टाचार्य, निदेशक, भाकृअनुप-राष्ट्री य अश्व् अनुसंधान केन्द्रग, हिसार ने इस महत्वयपूर्ण लघु पाठ्यक्रम की सफलता पर बधाई देते हुए कहा यह एक ज्व्लंत मुद्दा है क्यों कि सूक्ष्मजीव रोधी दवाओं का दुरुपयोग और अत्यधिक इस्तेमाल पशुधन व मानवता दोनों के लिए एक गंभीर खतरा है। उन्होंमने प्रतिभागियों को प्रोत्सािहित करते हुए प्रशिक्षण में प्राप्तं ज्ञान का उपयोग अपने कार्यस्थल पर करने पर जोर दिया ताकि इस प्रशिक्षण की सार्थकता सिद्ध की जा सके । केन्द्र के निदेशक एवं कार्यक्रम अध्यक्ष डॉ.समर कुमार घोरुई ने बताया कि इस पाठयक्रम का उद्देश्यद विषय-विशेषज्ञों के माध्यदम से सूक्ष्मजीव-रोधी प्रतिरोध और दवा अवशेषों की समस्या के समाधान हेतु अद्यतन जानकारी संप्रेषित करना रहा ।
उन्होंने दवा अवशेषों के प्रति गंभीरता बरतने, स्वा स्य्हे , पेस्टीेसाइड, प्राकृतिक खेती आदि विभिन्नं पहलुओं पर भी अपनी बात रखीं । समारोह के विशिष्टि अतिथि डॉ.लक्ष्म णदास सिंघला, पूर्व विभागाध्य्क्ष, गड़वासु, लुधियाना ने बदलते परिवेश में पशुधन को लेकर आ रही चुनौतियों की ओर ध्या्न इंगित करते हुए रोगाणुरोधी प्रतिरोध और दवा अवशेषों की समस्याह को कम करने की दिशा में काम करने की महत्ती आवश्यतकता जताई ।
उन्होंने दवा अवशेषों के प्रति गंभीरता बरतने, स्वा स्य्हे , पेस्टीेसाइड, प्राकृतिक खेती आदि विभिन्नं पहलुओं पर भी अपनी बात रखीं । समारोह के विशिष्टि अतिथि डॉ.लक्ष्म णदास सिंघला, पूर्व विभागाध्य्क्ष, गड़वासु, लुधियाना ने बदलते परिवेश में पशुधन को लेकर आ रही चुनौतियों की ओर ध्या्न इंगित करते हुए रोगाणुरोधी प्रतिरोध और दवा अवशेषों की समस्याह को कम करने की दिशा में काम करने की महत्ती आवश्यतकता जताई ।
पाठ्यक्रम संयोजक डॉ.राकेश रंजन, प्रधान वैज्ञानिक ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के प्रति आभार व्यक्त करते हुए बताया कि इस प्रशिक्षण के दौरान प्रतिभागियों को अनुसन्धान की नवीनतम तकनिकों यथा- मॉलडी टोफ, आर टी पी सी आर, एच् पी एल सी, जीनोम सिक्वेंसिंग आदि के बारे में सीखने का मौका मिला । कार्यक्रम का संचालन पाठ्यक्रम सह-समन्वयक डॉ. स्वांगतिका प्रियदर्शिनी, वैज्ञानिक द्वारा किया गया तथा धन्यवाद प्रस्ताव डॉ. श्यालम सुंदर चौधरी, वैज्ञानिक ने दिया ।
प्रतिभागियों ने भी कार्यक्रम के आयाजकों एवं प्रशिक्षणवेत्ताओं यथा- डॉ सागर खुलापे अशोक एवं डॉ विश्व रंजन उपाध्याय को धन्यवाद् देते हुए आश्वस्त किया कि इस कार्यकम के दौरान उन्हें काफी कुछ नया सीखने का अवसर मिला जिसका उपयोग वो अपने कार्यस्थलों पर करते हुए अपने अनुसन्धान कार्यो में नवीनता लाने का प्रयास करेंगे ।
प्रतिभागियों ने भी कार्यक्रम के आयाजकों एवं प्रशिक्षणवेत्ताओं यथा- डॉ सागर खुलापे अशोक एवं डॉ विश्व रंजन उपाध्याय को धन्यवाद् देते हुए आश्वस्त किया कि इस कार्यकम के दौरान उन्हें काफी कुछ नया सीखने का अवसर मिला जिसका उपयोग वो अपने कार्यस्थलों पर करते हुए अपने अनुसन्धान कार्यो में नवीनता लाने का प्रयास करेंगे ।
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